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कांग्रेस की एक और परीक्षा

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on बुधवार, 18 दिसंबर 2013 | 12:39 pm

AAP interacting with media.
देश की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी कांग्रेस की सेहत पर दिल्ली नतीजों से ज्यादा असर नहीं पड़ता। चूंकि वह इतनी बड़ी और इतनी पुरानी पार्टी है कि उसे आप नहीं मिटा सकते। बहरहाल एक परीक्षा हुई, जिसके नतीजों में कांग्रेस पूरी तरह से तहत नहस सी नजर आई। इससे अभी वह उबरी भी नहीं थी, कि दूसरी परीक्षा उसके सामने है। कांग्रेसी पहली परीक्षा में छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में सफाए के बाद थोड़ा आत्म चिंतन की मुद्रा में जरूर दिख रही है, लेकिन अभी भी अपनी 127 सालों पुराने तजुर्बे को वह कमतर नहीं मान रही। अभी दूसरी परीक्षा फिर उसकी होने जा रहा है। शकील अहमद इसे परीक्षा भले न मानें, सोनिया तो खैर क्या मानेंगी। मगर है तो कांग्रेस की ही परीक्षा। अब आआपा ने दिल्ली की जनता से पूछने के लिए २५ लाख लोगों तक सीधे पहुंचने की बात की है। उनसे एक बार फिर से यह पूछा जाएगा, कि वे सरकरा कांग्रेस के साथ बनाएं या नहीं। अगर इसमें बिल्कुल उल्टे नतीजे आते हैं, जिनमें जनता मना कर देती है। ऐसा हो भी रहा है, कई मीडिया, टीवी, अखबारों ने ऐसे सर्वे करवाएं हैं, जिनमें सरकार बनाने के लिए मना किया गया है। अगर ऐसे ही नतीजे आआपा के इस सर्वे में आते हैं, तो समझिए कांग्रेस एक और परीक्षा में फैल हो गई। वह कांग्रेस प्री पोल सर्वे में फैल होती है, वह एग्जिट पोल में फैल होती है, संवैधानिक चुनावी प्रक्रिया में फैल होती है, वह लोगों की आशाओं पर फैल होती है, वह कांग्रेस एक बार फिर से अगर इस सर्वे में भी फैल होती है, तो फिर क्या कांग्रेस को गंभीरता से सोचना नहीं चाहिए। आआपा ने भले ही सरकार बनाने के इस मसले को बेहद रोचक, गंभीर और नाटकीय बना दिया हो, लेकिन मसला सिर्फ सरकार बनाने का नहीं है न। इस पूरी प्रक्रिया में जहां भाजपा आआपा को दिल्ली से बाहर निकलने नहीं देना चाहती, ताकि वह देश में दिल्ली का सक्सेस कार्ड दिखाकर मोदी का रथ न रोके, तो वहीं कांग्रेस इन्हें हर शर्त पर एक्पोज करना चाहती है। आआपा से यूं तो कोई बड़ी भूल नहीं हुई, लेकिन एक भूल हो गई, वह यह कि 28 सीटों के साथ विपक्ष में बैठने की। उसे यह कहना था, कि हम सरकार बनाएंगे। लोगों में उत्साह जगता और जिन्होंने इन्हें वोट दिया है वह खुश होते, जिन्होंने नहीं दिया वह भी सोचते अबकी बार देंगे। मगर वह थोड़ा घूम गई, चूंकि उसके सामने थी ही इतनी बड़ी और तजुर्बेदार पार्टियां सामने।
- सखाजी
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