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दो मुसीबतें और आन पड़ी कांग्रेस पर

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on सोमवार, 30 सितंबर 2013 | 1:39 pm

कांग्रेस के लिए दो मुसीबतें और आन पड़ी हैं। अपने 9.6 सालों के कार्यकाल में कांग्रेस ने जितनी मुसीबतें नहीं फेस की होंगी, उतनी वे इसके अंतिम महीनों में फेस करने जा रही है। 

पूरे देश में बने एंटी कांग्रेस माहौल के साथ ही अभी तक कांग्रेस को उम्मीद थी, कि उसकी सहयोगी पार्टियां और छोटे-छोटे दल, निर्दलीय आदि मिलाकर वह दम भर सकती है। लेकिन अब अध्यादेश का वापस होना और लालू को सजा कांग्रेस के लिए उल्टे पड़ रहे हैं। इन दो मुसीबतों से कांग्रेस कैसे निपटेगी और क्या होगा उसका अब राजनैतिक पैंतरा, चलिए जानते हैं।

ऐसे जीत सकती है कांग्रेस

कांग्रेस को 2014 आम चुनाव में अपनी 150 सीटें जरूर मिलने की उम्मीद है, साथ में सपा भी 15 के ऊपर रह सकती है, बसपा भी इतनी ही सीटों पर रह सकती है, एनसीपी भी करीब इतनी ही सीटों पर जीत सकती है। यानी भरोसेमंद एनसीपी और सौदेबाज सपा, बसपा को मिलाकर कांग्रेस 200 तक पहुंचने का कैल्कुलेशन लिए बैठी है। अब उसे जेडीयू और भाजपा की तकरार से थोड़ी बहुत उम्मीद यानी दहाई अंकों की उम्मीद लालू और पासवान से भी है। यानी वह 210 तक पहुंच जाती है। तमिल में एंटी गवर्नमेंट फैक्टर के चलते थोड़े बहुत आंकड़े डीएमके के फेवर में आते हैं, तो वहां भी वह दहाई अंकों के साथ आ सकती है। यानी कांग्रेस पहुंचती है करीब 220 तक। अब आंध्रा में जाकर देखें तो कांग्रेस के अपने परखे हुए अस्त्र सीबीआई पर भरोसा है, खुदा न खास्ता जगन रेड्डी दहाई अंकों तक पहुंच गए तो फिर वह 230 तक पहुंच जाएगी। जगन अस न बस, इधर उधर से कांग्रेस को ही समर्थन देने में भलाई समझेंगे। चूंकि भाजपा उन्हें सीबीआई के चंगुल से मुक्त करवाने का वादा नहीं कर सकती, कांग्रेस ऐसा कर सकती है। लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस बहुतम से करीब 42 सीटें दूर रहेगी। कांग्रेस को उम्मीद है कि बीजू जनता दल भी दहाई अंकों तक पहुंचेगी, चूंकि वहां कोई एंटी गवर्नमेंट फैक्टर नहीं है और नवीन पटनायक  की छवि भी अच्छी है। इन सबसे ऊपर सेकुलर नवीन का झुकाव भी कांग्रेसी ही है। ऐसे करके कांग्रेस अभी के आंकड़ों के हिसाब से 240 का आंकड़ा पार कर सकती है।
आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन के जरिए (पिछड़े राज्यों का फॉर्मूला) जेडीयू की दहाई सीटें भी आती हैं, तो वह कांग्रेस के पाले में आ ही सकती हैं, भले ही बाहर से समर्थन जैसे ड्रामे ही क्यों न हों। यानी कांग्रेस पहुंचती है 250 सीटों तक। अब उसे 22 सीटों के लिए या तो लेफ्ट का सहारा लेना है या निर्दलीयों के साथ ममता को मनाना होगा। यह तो रहा कांग्रेस का कैल्कुलेशन। जो यह साबित करता है, कि कांग्रेस खुद से ज्यादा अपने सहयोगियों और संभावित सहयोगियों को जिताने पर ध्यान दे रही है।

नहीं तो होवित्जर तोप है ही

इसके बाद कांग्रेस के पास एक होवित्जर तोप तो है ही, कि आइए शरदजी, नवीन पटनायकजी, करुणानिधिजी, ममताजी, नीतीशजी, मुलायमजी, मायावतीजी। बनिए बारी-बारी से 3-3 महीनें प्रधानमंत्री, कांग्रेस आपको समर्थन देगी बाहर से। ठीक गुजराल और देवगौड़ा की तरह। चंद्रशेखर और वीपी सिंह की तरह। सबकी बारी आएगी। सबको पीएम बनना है। कांग्रेस इस वक्त अपनी सीटों से ज्यादा आशान्वित नहीं है, बल्कि यह ज्यादा ध्यान दे रही है, कि भाजपा किसी सूरत में न आ पाए। ताकि करप्शन, अनिर्णय जैसी  बात थोथा प्रचार साबित हो सकें।

हाय ये दो मुसीबतें

लेकिन अब दो बड़ी मुसीबतें आन पड़ी हैं। पहली तो अध्यादेश को लेकर बने माहौल और राहुल की सियासी ड्रामाई एक्टिविटी। दूसरी लालू जैसे लोगों को सजा। पहला कारण अध्यादेश अगर वापस आता है, तो सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के हिसाब से सजायाफ्ता सारे प्रत्याशी चुनाव से बाहर हो जाएंगे। ऐसे में कांग्रेस के सहयोगियों को ज्यादा नुकसान होना है। यानी वह सारे प्रत्याशी जो जीतने का दमखम रखते हैं, टिकटों से ही महरूम रह जाएंगे। ऐसे में भाजपा को फायदा मिल सकता है। वहीं लालू को हुई सजा के बाद से आम लोगों में क्षेत्रीय क्षत्रपों पर से भरोसा भी पूरी तरह से उठेगा और विरोधी प्रचारित भी खूब कर सकेंगे कि माया का कॉरीडोर आज नहीं तो कल ले जाएगा जेल, तो आय से अधिक संपत्ति मुलायम को आज नहीं कल दिलाएगी सजा। यानी भाजपा को लाभ। मोदी की आंधी चल ही रही है, तब भाजपा के लिए बल्ले बल्ले है। बशर्ते भाजपा कोई गलती न करे।
- सखाजी

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