नियम व निति निर्देशिका::: AIBA के सदस्यगण से यह आशा की जाती है कि वह निम्नलिखित नियमों का अक्षरशः पालन करेंगे और यह अनुपालित न करने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से AIBA की सदस्यता से निलम्बित किया जा सकता है: *कोई भी सदस्य अपनी पोस्ट/लेख को केवल ड्राफ्ट में ही सेव करेगा/करेगी. *पोस्ट/लेख को किसी भी दशा में पब्लिश नहीं करेगा/करेगी. इन दो नियमों का पालन करना सभी सदस्यों के लिए अनिवार्य है. द्वारा:- ADMIN, AIBA

स्त्री-पुरूष

Written By kavisudhirchakra.blogspot.com on शुक्रवार, 8 मार्च 2013 | 11:06 am

(महिलाओं की स्थिति पर एक कविता)


तुम (पुरूष)
सहज सकते हो
केवल
अपना अहम्
वह (स्त्री) सहेजती है
पीड़ा‌ और दर्द

पुरूष शब्द
तुम्हारे मस्तिष्क
और
तुम्हारी सोच को
खाली कर चुका है
विपरीत इसके
स्त्री भरी रहती है हमेशा
अपनी आँखों में आँसू
क्योंकि
इकठ्ठा करना जानती है वह

भरी रहती हैं हमेशा
उसकी दोनों आँखें
इसलिए तो
पलकें नम रहती हैं
और
उसके सुख
जगह नहीं मिलने पर
लौट जाते हैं खाली हाथ

पुरूष से स्त्री का
भेद सिर्फ इतना है
कि
स्त्री
वह शब्द है
जब
कहा जाए
परिभाषा लिखो दुःख की
तो
मात्र एक शब्द ही पर्याप्त है
स्त्री
Share this article :

4 टिप्पणियाँ:

vandana gupta ने कहा…

bahut gahari bat kah di

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

जब
कहा जाए
परिभाषा लिखो दुःख की
तो
मात्र एक शब्द ही पर्याप्त है
“स्त्री”।-सार्थक अभिव्यक्ति।
latest postमहाशिव रात्रि
latest postअहम् का गुलाम (भाग एक )

Amrita Tanmay ने कहा…

भेद गहरा..

Kailash Sharma ने कहा…

परिभाषा लिखो दुःख की
तो
मात्र एक शब्द ही पर्याप्त है
“स्त्री”।

...वाह! बहुत गहन और प्रभावी अभिव्यक्ति...

एक टिप्पणी भेजें

Thanks for your valuable comment.