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Life is Just a Life: कैसे स्वर्णिम स्वप्न बुने कविता

Written By नीरज द्विवेदी on शुक्रवार, 21 सितंबर 2012 | 10:05 am

Life is Just a Life: कैसे स्वर्णिम स्वप्न बुने कविता: अब पसर गयी हँस  अधरों पर  चूर थक हार उदासी है , आँखों के पोरों पर लूटे पिटे सपनों की ओस जरा सी है। पेट गए पथराये  जहाँ खाने को  खून ब...
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