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प्रयाग = प्राय + आग

Written By Brahmachari Prahladanand on शनिवार, 7 जनवरी 2012 | 7:49 am

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प्राय जहां पर आग रहती है, उसे ही प्रयाग कहते हैं, काफी दिनों से एक बात अंदर ही अंदर कुलबुला रही थी की इस कडाके की ठंडी में, हर साल माघ के मेला में, एक महीने तक गंगा और जमुना के संगम पर कैसे लोग प्रयाग में रह जाते हैं, फिर पता चला की गंगा का जल ठंडा है, और यमुना का जल गर्म है, और जब यह गर्म और ठन्डे पानी की जलधारा प्रयाग में मिलती हैं, तो वहां पर एक अलग ही तरह की आग पैदा करती हैं, और उस आग में जो रस बनता है उसे सरस्वती कहते हैं, यानी सरस्वती वहां पर मिलती नहीं, वहां पर प्रकट होती है |
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जो गंगा का जल प्रयाग से पहले है और जो जमुना का जल प्रयाग से पहले है, और प्रयाग के बाद का जल है उसमे अंतर आ जाता है, तो गंगा के ठन्डे जल और यमुना के गर्म जल के मिलने पर जो एक अलग तरह की आग एक आभा प्रकट होती है, उस आभा में उन लोगों को ठण्ड का पता नहीं चलता है, और वहाँ पर ज्ञान रुपी सरस्वती फिर बहती है, गंगा नहीं बहती है, क्यूंकि प्रयाग ज्ञान के मामले में बहुत बड़ा शिक्षा का केंद्र है |
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और फिर उससे आगे बनारस है, फिर आगे जैसे-जैसे बढती जाती है, आगे उस गंगा के किनारे पर रहने वाले या उस प्रदेश के लोग ज्ञान वाले होते हैं, और बुद्धिमान होते हैं, और जब गंगा बंगाल में जाती है तो वहां पर बंगाली लोग सबसे ज्यादा बुद्धिमान और विद्वान होते हैं, क्यूंकि वह अब गंगा नहीं अब सरस्वती है, और फिर यही सरस्वती आगे ब्रह्मपुत्र में मिलकर ज्ञान की पूर्ति करती है और पदमा नाम से जानी जाती है |

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