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कुंड़लिया ----- दिलबाग विर्क

Written By दिलबागसिंह विर्क on शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011 | 9:02 am


       अफजल- कसाब से कई , ठूंसे हमने जेल ।
       फाँसी लटकाए नहीं , देश रहा है झेल ।।
       देश रहा है झेल , किया खर्च करोड़ों में ।
       पारा बनकर बैठ , ये गए हैं जोड़ों में ।।
       कहे विर्क कविराय , मिले ऐसा इनको फल ।
       फिर भारत की तरफ , न देखे कोई अफजल ।।

                         * * * * *
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