नियम व निति निर्देशिका::: AIBA के सदस्यगण से यह आशा की जाती है कि वह निम्नलिखित नियमों का अक्षरशः पालन करेंगे और यह अनुपालित न करने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से AIBA की सदस्यता से निलम्बित किया जा सकता है: *कोई भी सदस्य अपनी पोस्ट/लेख को केवल ड्राफ्ट में ही सेव करेगा/करेगी. *पोस्ट/लेख को किसी भी दशा में पब्लिश नहीं करेगा/करेगी. इन दो नियमों का पालन करना सभी सदस्यों के लिए अनिवार्य है. द्वारा:- ADMIN, AIBA

Home » , , » ईमानदारी की बात में भी ईमानदारी नहीं...

ईमानदारी की बात में भी ईमानदारी नहीं...

Written By महेन्द्र श्रीवास्तव on शनिवार, 3 दिसंबर 2011 | 12:28 pm


अब टीम  अन्ना ईमानदारी की नई परिभाषा गढ़ रही है । लोकपाल में एनजीओ को शामिल किए जाने से ना जाने क्यों उनकी परेशानी बढ़ गई है । लोकपाल में और किसे किसे शामिल किया जाए, इससे ज्यादा जोर टीम  अन्ना का इस पर है कि कैसे एनजीओ को इससे  बाहर किया जाए । अब आंदोलन की हकीकत इसी बात से सामने आती है । मेरा मानना है कि आप ये मांग तो कर सकते हैं कि लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री, जजों को भी शामिल किया जाना चाहिए, लेकिन आप ये मांग भला कैसे कर सकते हैं कि एनजीओ को इसके दायरे में नहीं लाया जाना चाहिए ।
मेरी समझ में तो नहीं आ रहा है, आप अगर समझ रहे हैं तो मुझे भी बताएं । इस मांग का मतलब तो यही है ना  कि " ए "  को चोरी करने की छूट होनी चाहिए, लेकिन   " बी " को चोरी करने का बिल्कुल हक नहीं होना चाहिए । एनजीओ को लोकपाल में लाने की खबर से टीम अन्ना की हवाइयां उड़ गईं । टीम के सबसे ईमानदार और मजबूत सहयोगी अरविंद केजरीवाल ने तो आनन फानन में  सरकार को रास्ता भी सुझा दिया, उनका कहना है कि चलो अगर एनजीओ को लोकपाल के दायरे में लाया ही जाना है तो सबको ना लाया जाए, सिर्फ उसे ही लाएं जो एनजीओ सरकारी पैसों की मदद लेते हैं । हाहाहाहहाहा हंसी आती इस ईमानदार सामाजिक कार्यकर्ता पर ।
अरे केजरीवाल साहब हम एनजीओ से तो ये उम्मीद करते हैं ना कि वो ईमानदारी से काम करते होंगे । फिर आपकी छटपटाहट की वजह क्या है ? अन्ना जी तो बेचारे हर जांच खुद अपने से शुरू करने की मांग करते हैं ।  वो कहते हैं कि सबसे पहले उनकी ही जांच हो , लेकिन आपको ऐसा करने में दिक्कत क्यों है । मैं दूसरे एनजीओ की चर्चा नहीं करुंगा,  पहले आपकी दूसरी सहयोगी किरन बेदी की बात कर लेते हैं । उनके एनजीओ को सरकार से पैसा मिला या नहीं, मै ये तो नहीं जानता , लेकिन पुलिस कर्मियों के बच्चों को कम्प्युटर और कम्प्युटर ट्रेनिंग के लिए माइक्रोसाप्ट कंपनी ने 50 लाख रुपये लिए गए । अब आरोप लग रहा है कि उन्होंने इस पैसे का दुरुपयोग किया । ये सरकारी पैसा भले ही ना हो, लेकिन सरकारी कर्मचारियों के बच्चों के नाम पर लिया गया पैसा था, अगर इसमें बेईमानी  हुई है तो शर्मनाक है और दोषी लोगों को सख्त सजा होनी ही चाहिए । आप  चाहते  हैं कि ऐसे लोगों  को हाथ  में तिरंगा लेकर ईमानदारी की बात करने की छूट होनी  चाहिए ।

आप खुद सोचें कि जो ईमानदारी की बडी बड़ी बातें कर रहे हैं, उनके दामन साफ नहीं है,  कोर्ट ने सुनवाई के बाद उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर जांच करने के आदेश दिए हैं, तो फिर और एनजीओ का क्या हाल होगा । आखिर अरविंद केजरीवाल को  इससे दिक्कत  क्यों है ? वो किसे बचाना चाहते हैं ? मेरा अनुभव रहा है कि बहुत सारे सामाजिक संगठन विदेशों  से पैसे लेते हैं, मकसद होता है का गरीबों को मुफ्त इलाज, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा,  गांव का विकास, बाल श्रम पर रोक, महिला सशक्तिकरण,  पर  क्या ईमानदारी से सामाजिक संगठन ये काम करते हैं, दावे के साथ कह सकता हूं.. नहीं । ऐसे में अगर इन्हें  लोकपाल के दायरे में लाने की बात हो रही है तो आखिर इसमे बुराई क्या है, क्यों केजरीवाल आग बबूला हैं  ?

मित्रों वैसे भी  एनजीओ पर शिकंजा कसना जरूरी  है,  क्योंकि यहां बडे पैमाने  पर धांधली हो रही है । मैं इस बात का जवाब टीम अन्ना  से चाहता हूं  कि तमाम लोग आयकर  में छूट पाने के लिए सामाजिक संगठनों को चंदा देते हैं और यहां से रसीद हासिल करके आयकर रिटर्न में उसे दर्ज करते हैं । जब आयकर में एनजीओ की रसीद महत्वपूर्ण अभिलेख है तो क्यों नहीं एनजीओ को लोकपाल  के दायरे में आना चाहिए । मैं देखता हूं कि कारपोरेट जगत ही नहीं बडे बडे नेताओं और फिल्म कलाकार अपने पूर्वजों के नाम पर सामाजिक संस्था बनाते हैं और पैसे को काला सफेद करते रहते हैं ।

यहां एक शर्मनाक वाकये की  भी चर्चा कर दूं । देश में बड़े बड़े साधु संत धर्मार्थ संगठन के नाम पर धोखाधड़ी  कर रहे हैं । साल भर पहले आईबीएन 7 के कैमरे पर कई बडे नामचीन साधु पकड़े गए थे, जो कालेधन को सफेद करने के लिए सौदेबाजी कर रहे थे । वो दस लाख रुपये लेकर 50 रुपये की रसीद दिया करते थे । धर्मार्थ संगठन गौशाला,  पौशाला, धर्मशाला, पाठशाला समेत कई अलग अलग काम के लिए सामाजिक संस्था बनाए हुए हैं । मेरा मानना है कि सामाजिक संस्थाओं  को सरकारी और गैरसरकारी जितनी मदद मिलती  है, अगर इसका ईमानदारी से उपयोग किया जाता तो आज देश  के गांव  गिरांव की सूरत बदल जाती । ये चोरी का एक आसान रास्ता  है, इसलिए पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी सेवा में रहते हुए एक  एनजीओ जरूर बना लेते हैं और सेवाकाल  के दौरान पद का दुरुपयोग करके इसे आगे बढाने में लगे रहते हैं, जिससे  सेवानिवृत्ति के बाद इसका स्वाद उन्हें मिलता रहे ।

अच्छा हास्यास्पद लगता है कि प्रधानमंत्री को लोकपाल  के दायरे में लाने की बात की जा रही है, जबकि देश में आज तक  कोई ऐसा प्रधानमंत्री नहीं  हुआ है, जिसके लूट खसोट से जनता परेशान हो गई हो । अब आज की केंद्र सरकार को ही ले लें, सब कहते हैं कि आजाद भारत की ये सबसे भ्रष्ट्र सरकार है, लेकिन प्रधानमंत्री को सभी  ईमानदार बताते हैं । इसलिए अगर  लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को  एक बार ना भी शामिल किया जाए तो कोई पहाड़ टूटने वाला नहीं है, लेकिन जब सामाजिक  संगठनों की करतूतें सामने आने लगी हैं तो कोई कारण नहीं जो इन्हें लोकपाल  से अलग रखा  जाए । टीम अन्ना  से बस इतना ही कहूंगा  कि जनता देख रही है, कम से कम ईमानदारी की बात तो ईमानदारी से करो ।
Share this article :

8 टिप्पणियाँ:

nadim ram ali ने कहा…

iss taraha ki bakwas aap kaise kar lete hai ? ha ha ha ha ha ha ... kya aap ke pass koi rasta hai bhrashtachar khatam karne ke liye ? varna deshhit me kaam karo jisse desh ka bhala ho ... agar bhala nahi kar sakte to chup hi rahe to behtar hai ... baaak baaak baaak na kare .. Vande Mataram omallah

Swarajya karun ने कहा…

सारे के सारे एन जी. ओ. को लोकपाल के दायरे में ज़रूर लाना चाहिए,चाहे वो सरकारी अनुदान से चलते हों, या निजी क्षेत्र अथवा विदेशी पैसों से . अगर वो सच्चे हैं ,तो उनको भय किस बात का और झिझक किस बात की ? अरविन्द केजरीवाल को शायद दिक्कत हो सकती है ,लेकिन और किसी को भी कोई दिक्कत नहीं है.

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

पता नहीं आप इसे कैसे लेते हैं, पर मेरा मानना है कि ईमानदार आदमी समझदार भी होगा, ये विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता। अन्ना को ही ले लें, बेचारे खुद ईमानदार हैं, पर समझदारी की कमी होने से आगे पीछे ऐसी टीम बना रखी है जो खुद भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।

भाई नदीम राम अली के लिए कुछ लिखना समय खराब करना लगता है। जिस तरह की उनकी भाषा है उसे दुरुस्त करने में काफी वक्त लगेगा. फिर मैं लोगों को नैतिक शिक्षा का पाठ पढाने तो यहां आया नहीं हूं।

लेकिन अऩ्ना और रामदेव की छवि उनके इसी तरह के चेले खराब कर रहे हैं।

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

जो ईमानदारी की बडी बड़ी बातें कर रहे हैं, उनके दामन साफ नहीं है, कोर्ट ने सुनवाई के बाद उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर जांच करने के आदेश दिए हैं, तो फिर और एनजीओ का क्या हाल होगा । आखिर अरविंद केजरीवाल को इससे दिक्कत क्यों है ? वो किसे बचाना चाहते हैं ? मेरा अनुभव रहा है कि बहुत सारे सामाजिक संगठन विदेशों से पैसे लेते हैं, मकसद होता है का गरीबों को मुफ्त इलाज, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, गांव का विकास, बाल श्रम पर रोक, महिला सशक्तिकरण, पर क्या ईमानदारी से सामाजिक संगठन ये काम करते हैं, दावे के साथ कह सकता हूं.. नहीं । ऐसे में अगर इन्हें लोकपाल के दायरे में लाने की बात हो रही है तो आखिर इसमे बुराई क्या है, क्यों केजरीवाल आग बबूला हैं ?

Agree .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बेईमानों की पंचायत लगी है! क्या किया जाए?

Rajesh Kumari ने कहा…

bahut mahatvapoorn post ek hi thaali ke chatte batte hai ek hi thali ke lote hain upar se neeche neeche se upar sabhi ke sabhi khote hain.to kisi paksh ka bachaav kyun?sabhi ko ek chain me bandhna chahiye.

निर्मला कपिला ने कहा…

बिलकुल सच कहा\ चलो मीडिया मे कोई तो है जो अन्ना टीम के बारे मे सच और साफ बोलने क्क़ा साहस करता है वर्ना सब भेड चाल की तरह उनके पीछे भागे जा रहे हैं। यथार्थ के धरातल पर सभी एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं। अगर मै चोरी करता हूँ तो सही अगर दूसरे करते हैं तो क्यो? शुभकामनायें। आपके निश्पक्ष आलेख बहुत अच्छे लगे आज ही शायद इस ब्लोग को देख पाइ हूँ।

एक टिप्पणी भेजें

Thanks for your valuable comment.