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अब तो देर हो गई अन्ना...

Written By महेन्द्र श्रीवास्तव on मंगलवार, 1 नवंबर 2011 | 2:31 pm

बिल्कुल देर हो चुकी हैवो भी थोड़ा बहुत नहीं बल्कि काफी देर हो चुकी है  आपको जागने में। मुझे ही नहीं देश के लोग भी जानते हैं कि आपने इसीलिए  मौन धारण किया हैजिससे आत्ममंथन कर सही फैसला कर सकें। आप मौन से ज्यादा नाराज हैं,चूंकि इसके लिए आप खुद जिम्मेदार हैंलिहाज बोलने से बेहतर था कि आप चुप हो जाते और  यही किया भी आपने।


 सच ये है कि अन्ना से चिपके लोग बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी हैं। अन्ना त्याग का संदेश देते हैंलेकिन उनके  करीबियों पर उनकी बातों का कोई खास असर नहीं है ।  जंतर मंतर के अनशन को मिली कामयाबी के बाद अन्ना  दिल्ली के सहयोगियों के हाथ की कठपुतली  बन गए । सरल अन्ना समझ नहीं पा रहे थे और अन्ना को आगे रखकर कुछ लोग अपना कद बढाने में जुट गए । 
वैसे  जंतर मंतर के अनशन के बाद सरकार हिली  हुई थीउसे समझ में नहीं आ रहा था कि इस पूरे मूवमेंट से कैसे निपटे । इसी दौरान सरकार के कुछ घाघ मंत्रियों ने एक पासा फेंकाऔर कहा कि वो चाहते हैं कि मजबूत जनलोकपाल बिल बने ।  आइये हम सब मिल कर बिल का ड्राप्ट तैयार करें । सरकार ने एक साजिश के तहत अन्ना की और ये पासा फैंका कि आप पांच  लोगों के नाम दे, जो सरकार के साथ बैठकर बिल का प्रारूप तैयार करेंगें । मुझे लगता है कि जिस दिन टीम अन्ना बिल ड्राप्ट करने के लिए सरकारी कमेटी में शामिल हईउसी दिन ये आंदोलन मजबूत होने के बजाए कमजोर सा पड़ गया । क्योंकि सरकार ने जो सोच कर ये चाल चली थी वो उसमें कामयाब हो गई। सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि के तौर पर जो पांच लोग सरकार से बात कर रहे थेउन पर ही सवाल खड़े होने लगे कि आप सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि कैसे बन गए।
बाबा रामदेव ने  सबसे पहले इस टीम पर हमला हमला बोला और कहा कि यहां भी परिवारवाद की बू आ रही है। पांच लोगों की टीम में पिता पुत्र को शामिल कर दिया गया । मसखरे नेता लालू यादव ने तो इस टीम का सार्वजनिक रूप से  माखौल उड़ाया । उन्होंने अन्ना से जानना चाहा कि इस सिविल सोसाइटी का चुनाव कब हो गया ?  अन्ना को सफाई देनी पड़ी कि ये टीम केवल बिल का प्रारूप तैयार करने तक की है। प्रारुप बनने के बाद टीम का काम खत्म  हो जाएगा ।  सवाल ये है अन्ना जी कि क्या आपको लगता है कि सरकार के पास बिल ड्राप्ट करने वालों की कमी है। आपने तो जनलोकपाल बिल का प्रारूप पहले ही तैयार कर लिया था और उसमें आप किसी तरह का बदलाव आपको  मंजूर ही नहीं था । 

ऐसे में  आप चाहते तो अपना बिल सरकार को सौंप कर साफ कर देते कि इसमें हम कोई बदलाव नहीं चाहते। लेकिन नहींआपके साथ के लोग महत्वाकांक्षी थेउन्हें लगा कि इसी बहाने सरकार के बडे बड़े मंत्रियों के साथ बैठने का मौका मिलेगा । इसी एक गल्ती का खामियाजा आज तक अन्ना भुगत रहे हैं । भाई आप तो सरकार का सहयोग करने के लिए ड्राप्ट कमेंटी में शामिल  हुए थेजब आपकी सुनी ही नहीं जा रही थीतो वहां एसी कमरे में मंत्रियों के साथ चाय पीने लगातार क्यों जा रहे थे।  अंदर चाय पीकर बाहर गाली देने का क्या मतलब है । पहले ही इस कमेटी को छोड़ कर पल्ला क्यों नहीं झाड़ लिया ?

बहरहाल सरकार अपने मकसद  में कामयाब  हो गई थीक्योंकि जो लोग दिन रात मेहनत कर रहे थेवो कहीं पीछे रह गए  । अन्ना टीम में नामचीन लोगों का कब्जा हो चुका था । रामलीला मैदान में अनशन के दौरान जब इनसे सरकार ने बात करना बंद कर दिया तो इनकी धड़कने तेज हो गईंक्योंकि ये चाहते थे अन्ना अनशन पर बने रहें और हमसे हर मंत्री बात करें । लेकिन सरकार ने इन्हें बात चीत शुरू  करने के लिए ही खूब छकाया । हालत ये हो गई कि ये लोग टीवी पर बोलने लगे कि हम बात चीत किससे करेंहम तो चाहते हैं कि बात हो ।
बहरहाल अब आज की बात करें तो मुझे लगता है कि ये टीम राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखती है और सबका अपना अपना  एजेंडा है । वैसे  इस टीम को  एक गलतफहमीं भी है ।  जहां तक मैं इस टीम को समझ पाया हू मुझे लगता है कि भ्रष्टाचार को मिले देशव्यापी समर्थन को ये टीम समझती है कि ये  समर्थन उसे  मिला है । यही वजह है कि इन सभी के चाल ढाल बदल गए।  अन्ना ने संसद सदस्यों को जब नौकर और जनता को मालिक बताया तो  ये खुद को खुदा मान बैठे । देश की बड़ी बड़ी समस्याओं को सुलझाने लगे। लेकिन जो कश्मीर की समस्या इतने दिनों से उलझी हुई है, जब टीम अन्ना के एक सदस्य प्रशात भूषण ने उसे सुलझाने की कोशिश की तो  बेचारे को पब्लिक का थप्पड़ झेलना पडा ।

मैने पहले ही कहा था ईमानदारी की लड़ाई वो ही लड़ सकता है,  जिसका खुद का दामन पूरी तरह साफ हो । बाबा रामदेव के समर्थकों पर केंद्र   सरकार ने लाठी भांजने का फैसला इसीलिए किया क्योंकि उनका दामन पाक साफ नहीं है। विदेशों में जमा कालेधन को बाहर लाने की मांग कर रहे हैं, पर उनके हाथ भी इसी कीचड़ में सने हुए है। यही वजह है कि रामलीला मैदान से तड़ीपार किए जाने के बाद से बाबा बेचारे खुद अपनी सफाई देने में लगे हैं । अब ऐसे बाबा जब सरकार को घेरने की कोशिश करेंगे जो पांच रुपये का चूरन चटनी 50 रुपये में बेच रहे हों, तो ऐसा आंदोलन भला कैसे कामयाब हो सकता है।
कुछ यही हाल अन्ना के सहयोगियों की  है । मुझे लगता है कि इस आंदोलन के मुख्य सूत्रधार अरविंद केजरीवाल हैं ।  उनकी पत्नी के सरकारी आवास पर ही पूरे आंदोलन की रुपरेखा बनाई जा रही है । दूसरों  को नैतिकता का  पाठ पढाने वाले लोगों को ये समझ में क्यों नहीं आता कि उन्हें भी इस पवित्र आंदोलन से तब तक दूर रहना चाहिए, जब तक की उन पर लगे आरोप गलत साबित नहीं  हो जाते हैं । लेकिन ये कैसे संभव है, ये कैसे भी हों, कुछ भी कर रहे हों, कोई फर्क नहीं पड़ने वाला । ये टीम तो दूसरों को ईमानदारी का सर्टिफिकेट  देने के लिए है । ये जिसे कहे  ईमानदार वो ही ईमानदार वरना सब बेईमान । अरविंद केजरीवाल पर सरकारी बकाया,  दूसरी सदस्य किरन बेदी हवाई जहाज के किराये की गलत तरीके से वसूली । कुमार विश्वास   बच्चों के पढाई में व्यवधान डाल रहे हैं । हालाकि छुट्टी वो ले सकते हैं, इसमें कोई दो राय नहीं, लेकिन बच्चों की पढाई की कीमत पर तो नहीं ही ली जानी चाहिए ।

आप कह सकते है कि सियासी लोग जितने बडी चोरी कर रहे हैं, उसके आगे इनका अपराध तो कुछ भी नहीं  है । इस बात से तो मैं भी सहमत हूं, लेकिन मेरा मानना है कि इनके भ्रष्टाचार से ये साफ  हो गया है कि इन्हें बडा हाथ मारने का मौका नहीं  मिला । जो मौका मिला, उससे भुनाने में ये पीछे  नहीं रहे । उसका दोहन तो किया ही है।  अब ये टीम विवादों  के घेरे में है, मेरा मानना है कि कम से कम इस टीम ने ईमानदारी की वकालत करने का नैतिक अधिकार खो दिया है । अन्ना के निश्कलंक जीवन को ये टीम दागदार बनाने में जुटी है । इन सभी को सियासत करना है, अभी से  चर्चा हो रही है कि किरन बेदी दिल्ली की चांदनीचौक और अरविंद केजरीवाल  हिसार  लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं । ऐसी  चर्चाओं के बीच  इन्हें खुद को सियासत से दूर  रखना  चाहिए, लेकिन ये अभी  भी इस बात पर आमादा है कि चुनावों के दौरान वो अपना अभियान जारी रखेंगे, इससे साफ है कि इनका सियासत से कुछ अंदरखाने रिश्ता है।

हालाकि अब अन्ना को भी बात समझ में आने लगी है, यही वजह है कि वो मौन व्रत कर आत्ममंथन कर रहे हैं कि कैसे सब कुछ ठीक ठाक किया जाए । लेकिन सच ये है कि अन्ना की दागी टीम ने पूरे आंदोलन की साख पर बट्टा लगा दिया है ।  अब  और लोग भी चर्चा करने लगे हैं कि जरूर इस आंदोलन के पीछे कुछ सियासी लोगों का हाथ है।  वैसे ये आरोप लगना गलत भी नहीं है क्योंकि इस वक्त पूरी तरह टीम  अन्ना एक राजनीतिक दल की तरह बर्ताव कर रही है, वो चुनाव में एक राजनीतिक दल को हराने और बाकी को जिताने की बात कर रही है । हालांकि  ये राजनीति के भी जोकर हैं,  जिस तरह भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम में इनका रवैया पारदर्शी नहीं है, उसी तरह सियासत के मैदान में भी ये अधकचरे हैं।  टीम अन्ना  निगेटिव राजनीति   कर रही है,  वो चुनाव वाले इलाके में जाते हैं और एक पार्टी को वोट ना देने की अपील करते हैं, पर ये नहीं कहते की मतदाता वोट किसे दें । इसके पीछे डर सिर्फ एक कि अगर जिसे वोट देने की अपील टीम अन्ना ने की उसके अलावा कोई दूसरा जीत गया तो उनकी औकात भी लोगों के सामने खुल जाएगी, बस अपनी खोई  प्रतिष्ठा को बचाने के लिए  जनता में आधी अधूरी बात कर रहे हैं ।

वैसे  अब अन्ना की समझ में आ गया है कि उनके नाम का कुछ लोग गलत इस्तेमाल कर रहे हैं । अन्ना के टीम में भी खुलेआम बगावत की बू आने लगी  है।  इसी टीम के कुछ खास सदस्य भीतर की बात सीधे अखबारों और चैनल के संपादकों के साथ शेयर कर कोशिश करते हैं कि वो अधिक से अधिक समय तक टीवी के पर्दे पर दिखाई देते रहें।  इसके लिए बेचारे सुबह से शाम तक  मीडिया से संपर्क बनाए रखते हैं।  अब एक सदस्य को ही ले लीजिए, दो पन्ने की चिट्ठी  अन्ना को लिखकर  टीवी के जरिए उन्हें बताते रहे कि पत्र में उन्होंने क्या लिखा है । आखिर जब सारी बात टीवी पर ही करनी थी तो पत्र लिखने का क्या मतलब है । मै  नहीं समझ पा रहा हूं कि  टीम अन्ना के सहयोगी किसे बेवकूफ बना रहे हैं । बहरहाल अन्ना अगर  दिल्ली वालों के चंगुल से मुक्त हो पाए तो वो अब इस टीम में इस तरह का फेरबदल करना चाहते हैं कि उनके बाद सबकी औकात एक रुपये के साधारण सदस्य जैसी हो । टीवी पर कोई बोलने नहीं जाएगा, टीम अन्ना का अस्तित्व नहीं रहेगा, पूरे दिन घूम घूम कर चैनलो पर ज्ञान बांटने पर पूरी तरह रोक लग जाएगी । ऐसा कठिन फैसला अगर अन्ना कर रहे हैं तो जाहिर है कि उन्हें भी कुछ बातें तो इनके बारे में मालूम हो ही गईं होंगी, वरना इतना सख्त कदम भला अन्ना क्यों उठाते । अन्ना को मनाने की एक कोशिश कल  दिल्ली से रालेगांव जा रही टीम करेगी, लेकिन वो कामयाब होगे, ऐसा लगता नहीं है, क्योंकि अन्ना  जितना सरल हैं, उससे कई गुना जिद्दी भी । बहरहाल मेरी प्रार्थना कि ये आंदोलन  किसी भी तरह कामयाब जरूर हो ।

 
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1 टिप्पणियाँ:

Rajesh Kumari ने कहा…

humaari bhi yahi manokamna hai ki Anna ji safal ho unke saath sahi logon ka saath ho sahi disha me jaayen.bahut achcha aalekh.aabhar.

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