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जीवन धारा

Written By नीरज द्विवेदी on गुरुवार, 24 नवंबर 2011 | 8:53 pm




अविरल चलती करती छल छल,
रखती सुख दुःख जीवन धारा।
स्वयं अकिंचन, भरती कण कण,
गति निर्मोही ये जीवन धारा॥
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