नियम व निति निर्देशिका::: AIBA के सदस्यगण से यह आशा की जाती है कि वह निम्नलिखित नियमों का अक्षरशः पालन करेंगे और यह अनुपालित न करने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से AIBA की सदस्यता से निलम्बित किया जा सकता है: *कोई भी सदस्य अपनी पोस्ट/लेख को केवल ड्राफ्ट में ही सेव करेगा/करेगी. *पोस्ट/लेख को किसी भी दशा में पब्लिश नहीं करेगा/करेगी. इन दो नियमों का पालन करना सभी सदस्यों के लिए अनिवार्य है. द्वारा:- ADMIN, AIBA

Home » » यूँ न तसल्ली दो मेरे अरमानों को

यूँ न तसल्ली दो मेरे अरमानों को

Written By Brahmachari Prahladanand on सोमवार, 14 नवंबर 2011 | 8:31 am

यूँ न तसल्ली दो मेरे अरमानों को,
कहकर की जिन्दगी सबको न मिली बराबर है,
कीड़े की तरह कोई रेंगता जिन्दगी को,
किसी को जमीन पर पैर रखने की फुरसत न मिली बराबर है,

किसी की कमजोरी को अपनी ताकत बनाना बहुत लोगों का शगल है दुनिया में,
किसी को अपने से कमज़ोर देख कर तसल्ली कर लेना भी शगल है दुनिया में,
दूसरे की तरफ नज़र क्यूँ करें अपने आपनो को क्यूँ न सहेजें,
दूसरों की कमियों से अपने-आपको मज़बूत क्यूँ आंके,

इस तरह तो फिर कुछ न कर पायेंगे,
जिन्दगी में बस दूसरों तो कमतर ही करते जायेंगे,
गर कमी न भी हो उसमे तो कोई न कोई कमी निकाल लायेंगे,
उस के सामने अपने को उससे अच्छा साबित करने में लग जायेंगे,

किसी की कमी से अपने को ऊँचा रखने की वजाए,
अपनी तरक्की की सोच रखनी होगी,
गर जूता तो क्या, पैर तो क्या, कुछ भी न हो,
पर इस दुनिया में भाग्य के सहारे की आदत छोडनी होगी,

                                                     ------- बेतखल्लुस


.

.
Share this article :

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

Thanks for your valuable comment.