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फ़क्त-ए-उज्मात से

Written By Brahmachari Prahladanand on रविवार, 9 अक्तूबर 2011 | 10:23 am

फ़क्त-ए-उज्मात से,
वक्त के साए को कैसे रोकूँ,
मैं तो वही हूँ,
जिन्दगी के हालत को कैसे रोकूँ,

आती हैं, जाती है, सुईयाँ,
घडी की गोल-गोल घूम जाती हैं,
जिस्म ऊपर से कितना बदल जाता है,
आईने में देख, रूह तो वही रह जाती है,

अचरज होता जब जिस्म यूँ,
वक्त-ए-वक्त बदलता,
रूह अभी-भी वैसे ही है,
आईना न जाने कितने बदलता,

हर लम्हा गुज़र जाता,
वक्त कब का गुज़र जाता,
छूट गया जो जिस्म,
वो फिर कभी न पाता,

                         ------- बेतखल्लुस


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1 टिप्पणियाँ:

विभूति" ने कहा…

हर लम्हा गुज़र जाता,
वक्त कब का गुज़र जाता,
छूट गया जो जिस्म,
वो फिर कभी न पाता,.. bhaut hi khubsurat....

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