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त्रिपदा अगीत .पंचक.....ड़ा श्याम गुप्त....

Written By shyam gupta on रविवार, 14 अगस्त 2011 | 9:47 am



जीवन जीना एक नियम है,
नियम स्वयं ही इक जीवन है ;
नीति-नियम से जीले मानव |

कोटिभि ग्रन्थ पढ़ लिए तो क्या,
कोटिभि ग्रन्थ लिख लिए तो क्या;
प्रेम न् जाना तो क्या जाना ?

भ्रष्ट आचरण हैयदि तो क्या,
सुधर जायगा, इच्छा तो कर;
सत्कर्मों की माला जपले |

कहने को चाहे पंडित हैं,
मुल्ला फादर भी हैं तो क्या;
यदि अच्छे इंसान नहीं हैं |

जब जब याद हमारी आये,
हमें देखने को मन चाहे;
दर्पण के सम्मुख आजाना |
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