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आखिर कब तक

Written By नीरज द्विवेदी on शुक्रवार, 12 अगस्त 2011 | 5:00 am



यूँ मृतप्राय पड़े बस सोने से, क्रांति नहीं हुआ करती,
खुद पेट भर लेने से, राष्ट्र की भूख नहीं मिटा करती,
तेरे केवल जी लेने से, ये दुनिया नहीं जिया करती,
मत भूल बिन राष्ट्र तेरी भी, जिंदगी नहीं चला करती॥

कब तक बना रहेगा गर्दभ, अपनी अपनी किये रहेगा?
खुद का जीवन सुखमय, कब तक खुश ही बना रहेगा?
एड़ी छोटी घिस, स्वयं का भबिष्य बनाने की कोशिश,
करते करते यूँ ही तू, अब हल से कब तक जुता रहेगा?

मानव बन अब तो जाग, पहचान स्वयं को जीवित हो जा,
सोच समझ, कुछ कदम बढ़ा, कब तक भेडचाल चलेगा?
आज़ाद देश का पंछी है तू, ज्वालामुखी छिपाए अन्दर,
खुद को भूल, राष्ट्र पर यूँ ही, कब तक बोझिल बना रहेगा?

उतार जंग की परतों को अब, तलवारों में लगी हुयी,
तिलक लगा रक्त से अब,कब तक म्यान में ही रखेगा?
प्रारम्भ कर इन गद्दारों से, सफ़ेद रंग के सियारों से,
फिर बदल दे भारत का नक्शा भी, यूँ राष्ट्र तू बदलेगा॥

जाग अब तो जाग क्रांतिवीर, कब तक हल से जुता रहेगा?
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1 टिप्पणियाँ:

तरुण भारतीय ने कहा…

देश के स्वाभिमान के प्रति जागरूक करती पोस्ट ...बहुत अच्छा लिखा आपने ...

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