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साधू और चिलम - SADHU AND CHILAM

Written By Brahmachari Prahladanand on बुधवार, 13 जुलाई 2011 | 9:41 am



साधू और चिलम बड़ा पुराना रिश्ता है |
साधना करने के लिए वो साधू बना है  |
चिल होने के लिए वो चिलम पीता है |

चिलम यानी चि ल म |
चि जो है वह चीन में ताई चि में प्रयोग में आती है |
चि का जो केंद्र है | उस को जगाने के लिए, लपट जब लगाई जाती है, तो मन मर जाता है और मन को मारने का चिलम एक अच्छा साधन है | साधू तभी साधू होगा जो चिलम लगाता होगा | बिना चिलम के साधू तो हो ही नहीं सकता है | चिमटा, चिलम, यह पहचान है उसकी जो चि नामक विद्या को जगाने का काम करता है |

चेला
चेला यानी चिलम ला यानी चिलम को लाने वाले और भरने वाले को चेला कहते हैं | चिलम जो भरना सीख गया वही चेला हो सकता है |

भभूत, भस्म, कोपीन, जटा-जूट, कमण्डल, खप्पर, त्रिपुंड, खडाऊं, दण्ड, यह सब साधू की निशानी है | बिना इसके तो साधू को कोई पहचाने ही न | अब नागा बाबा रहना है तो फिर शर्म नहीं आनी चाहिए | अगर शर्म है किसी में तो उसमे अभी काम भी है | यानी अभी उसी नज़र साफ़ नहीं है | और चिलम, भभूत, भस्म उसकी इस शर्म को दूर करते हैं | रहता है वह वीराने में, वीराना कहते हैं उसको जहाँ होता है वीरों का आना-जाना | जो वीर नहीं है वह वीराने में कभी नहीं जा सकता है | और रहते हैं शमशानों में, शम हैं शान है जहां पर शम यानी शांति, यही जहां पर शांति की शान है, शमशान में ही तो शांति होती है | लपेटते है भभूत, जिस भूत का नाम सुनकर अच्छों-अच्छों को पसीना छुट जाता है, उस भूत की भभूत लपेटते हैं | कोप न आये इसलिए पहनते हैं कोपीन | तो साधू की बात निराली है | उसको समझ पाना हर किसी के बस की बात नहीं है | साधू आज से नहीं सदियों से ऐसे ही रहता आया है | निडर और सफाक जीता आया है | गाड चिमटा जहां वही उसका डेरा होता है | चिल Chill होने का तो ज़माना है | आज भी ये एक फ़साना है
चिल हो जा भाई कहता ये जमाना है | थोडा चिल होले सुनाता ये जमाना है |

चिलम
चिल अम | चिल मतलब शांत | अम आम तौर पर यानी आसानी से, शांत होता है जब कोई आसानी से उसे कहते हैं चिलम | चिलम का इजाद करने वाला पता नहीं कोन था ? पर चिलम दे गया वो नायब था | 
साधुओं का डेरा,
नागाओं का अखाड़ा,
उस पर न हो धुआँ धकाड़ा,
बजता है जब नगाडा,
तब साधु को आती है अकड़,  अकड़ तभी आती है साधु में जब वह चिलम लगा लेता है | एक चिलम का कस उसे दुनिया से पार पंहुचा देता है | फिर उसे जो ध्यान लगता है वह तो वही जानता है |  चिलम वही पीता है छाती जिसकी मज़बूत होती है | कमज़ोर छाती वाला चिलम नहीं पी सकता है | भयंकर जानवरों से भरे जंगल में जब साधु कुटी बनाकर, या गुफा में अकेला रहता है | तो यह चिलम उसे बहुत साथ देती है | आज भी हिमालय में ऐसी जगहें हैं जहाँ पर आस-पास न बस्ती है न आदम न आदम की जात है | और वहां पर साधु डटा है |  अगर पास भी जाओ उसके तो पास न फटकने देगा | अलमस्त अपनी मस्ती में रहेगा | न मांगता है खाना न मांगता है पानी |  न मांगता है भिक्षा न मांगता है दक्षिणा | बस अपने में मस्त है | उसका जीवन अगर कोई जानना  चाहे  तो फिर चिलम उसी भरनी पड़ेगी और फिर गाली भी उसकी खानी पड़ेगी | चिलम जो भरे गुरु की वही तो चेला कहता है | चिलम भर-भर कर ही तो वह ज्ञान पाता है | चिलम की आग उसे देती है की जैसे ये आग इस नसे को भी राख बना रही है उसी तरह अन्दर की आग भी तेरे मन के नसे को भी राख बना देगी | अपने अन्दर की आग को जगा जिसे ची कहते हैं जिसे मूलाधार कहते हैं और उसे फिर सुलगा और उससे फिर अपने मन के नसे को जला | तो तू चिलमन हो जाएगा | तेरा मन भी इस नसे की राख की तरह हो जाएगा | फिर उसपर प्राणायाम  की झाड़ू  मर तो वह उड़ जाएगा | बात बस इतनी सी है | अपने अन्दर जो आग सुलग रही है जठर अग्नि की उसे आग को सुलगाना है | फिर उसमे सभी कुछ भस्म कर देना है | चाहे वह अच्छा मन हो की बुरा मन हो | मन को ही भस्म कर देना है | जैसे भगवान् शिव ने काम को भस्म किया था | उसी तरह मन को भस्म करना है | क्यूंकि मन ही है जो काम है | मन नहीं तो फिर कोई काम नहीं है | तो इस मन को ही भस्म कर देना है | इस जठर अग्नि की आग में मन नहीं तो फिर कोई इच्छा नहीं फिर चाहे वह अच्छी हो की बुरी हो | फिर तो वह इच्छा रहित है | और डर अगर लगता है की मन मर जाएगा तो हम मर जायेंगे तो फिर साधु मत बन
क्यूंकि मन को लेकर और साधु बनेगा तो फिर विश्वामित्र की तरह गिरेगा | और त्रिशंकु की तरह अपने चेले को भी ले डूबेगा | साधु बनना है तो फिर निस्फिकर, निश्चिंत, निरालम्ब, निराधार होना होगा | यह चीजे तभी मिल सकती हैं जब वह इस चिलम की आग से अपने चिलम की आग तक पहुंचेगा | क्यूँ की परीक्षा कोई भी हो पर असली परीक्षा, अग्नि परीक्षा ही होती है | हर किसी को गुज़रना होता है इससे तभी तो निखरना होता है | बिना अग्नि परीक्षा से गुज़रे कोई सिद्ध मानता नहीं | मीरा ने भी स्वीकार किया, अग्नि परीक्षा से गुज़रना, जहर का प्याला पीना भी तो अग्नि परीक्षा है, पर पिया और सिद्ध हो गयी | प्रह्लाद ने भी तो अग्नि में बैठना स्वीकार किया, ऐसे बहुत अग्नि परीक्षा देने वाले हैं | सीता माता जी ने भी दी और वही भी सिद्ध रहीं | बात बस इतनी सी है |

गर होना है दुनिया से दूर और करनी है साधना कठोर तो साथ इसका लेना होगा | इसे नशा नहीं एक साधन मानना होगा | तभी आयेगी साधना में तल्खी और तभी फिर अद्वैत का सिद्धांत सिद्ध होगा |तभी वह अपने को अहम् ब्रहम असमी से कम नहीं समझेगा | साधू जो है वह नागाओं को ही कहा जाता है | क्यूंकि कपडा तो वो पहनते नहीं | कपडा का मतलब अभी कप है उनमें | कप का मतलब कपटी हैं | गुरु के साथ कपट नहीं किया जाता है | किन्तु नागा साधू बिना कपड़ों दे रहते हैं | वे कपट नहीं करते हैं | कपट एक ही होता है | वह है उपस्थ का | जब गुरु के पास शिष्य आता है तो वह कहता है उपस्थित | उपस्थित का मतलब होता है की उपस्थ इत यानी उपस्थ का इत हो जाना यानी उपस्थ (लिंग) का इत (मिट जाना ) हो जाना | यानी काम का मिट जाना, यानी वासना का तिरोहित हो जाना | जब उपस्थ इत हो जाता है, यानी वासना और काम मिट जाते हैं, तो ही वह पक्का साधू होता है | और नागा साधू के उपस्थ में कोई हलचल नहीं होती है | किन्तु जो साधू अभी लंगोट यानी लिंग का ओट में रख रहा है | तो कुछ न कुछ गड़बड़ है | नहीं तो वह लिंग को ओट क्यूँ दे रहा है |  और अगर कोपीन पहनता है तो भी कुछ न कुछ गड़बड़ है |  क्यूँ की कोप (क्रोध) इन यानी अभी उसे अन्दर क्रोध है |  और कोपीन पहनने वाले साधू बड़े क्रोधी होते हैं | और गीता में कहा है की कामत क्रोधो विजायेते |  यानी काम है से क्रोध की उत्पत्ति होती है | यानी अभी इसमें काम है और वह काम अभी पूरा नहीं हुआ है, इसलिए यह क्रोधित है, चिड़ा हुआ है  | जिसका काम पूरा नहीं होता है वह क्रोधित हो जाता है |   दर्श यानी दर्शन जिसके किये जाते हैं वही आदर्श बन जाता है | नागा साधू के दर्शन ही तो करने लोग जाते हैं कुछ मेले मैं | साधना की दृष्टी से साधना की परम्परा योगियों के पास है और तांत्रिकों के पास है, नागा साधू पहले योगी ही में गिने जाते थे |  साधू चिलम पी रहा है तो पी रहा है और आज से ही नहीं पता नहीं कबसे और कब तक पीएगा पता नहीं |  क्यूँ की आम जनता के नज़र में साधू वही है | भले ही वह चिलम पीता है | नागा रहता है | उसके पास गाली है |  पर आम जनता के लिए वही साधू है | इसलिए साधू की गाली भी आशीर्वाद समझी जाती है | साधू से जनता आशीर्वाद चाहती है, ज्ञान नहीं चाहती है | साधू से जनता चमत्कार चाहती है | कोरा ज्ञान नहीं चाहती है | चमत्कार करने वाले को साधू माना जाता है और उसको नमस्कार किया जाता है | जनता इनकी के पास जाती है | जनता साधू का दर्शन करने जाती है ज्ञान लेने नहीं जाती है | जनता ज्ञान के मामलें में तो बहुत आगे हैं | पर साधना के मामले में नहीं है |

नशा
न आशा
जब किसी को कोई आशा नहीं रहती तो फिर जो वह करता है वह है नशा | जो हताश हो जाता है जीवन से और आशा जिसकी खो जाती है | तो फिर वह किसी भी चीज़ को नशा बना सकता है | और उसमे सबसे पहला नशा होता है शराब का फिर आगे के नशे होते हैं | शरबत और शराब, दोनों ही शर से बनते हैं | शर कहते हैं सरकंडे को, उसके रस से जो बनता है उसे कहते है शरबत और शराब, अब तो यह शरबत और शराब काफी और वस्तुओं से भी बनने लगी है | पर इसकी शुरुवात सरकंडे से ही हुई है | नशा और चिलम में बहुत फर्क है |

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